पाक-बांग्लादेश में शियाओं से घोड़े की पूजा के बारे में क्यों पूछा जाता है, दुनिया में सुन्नी क्यों करते हैं इतनी नफरत?

नई दिल्ली: पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के कुर्रम जिले में अरसे से जारी सांप्रदायिक हिंसा में अब तक कम से कम 150 लोगों को जान गंवानी पड़ी है और 100 से ज्यादा घायल हैं। मृतकों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इस भीषण हिंसा क

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नई दिल्ली: पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के कुर्रम जिले में अरसे से जारी सांप्रदायिक हिंसा में अब तक कम से कम 150 लोगों को जान गंवानी पड़ी है और 100 से ज्यादा घायल हैं। मृतकों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इस भीषण हिंसा के बाद दोनों संप्रदायों के बीच एक बैठक हुई। फैसला यह हुआ कि शिया और सुन्नी संप्रदाय के लोग अगले 7 दिनों तक सीजफायर का पालन करेंगे। इस हिंसा ने एक बार फिर सुन्नी और शियाओं के बीच मतभेदों को उजागर कर दिया है। इन मतभेदों की गूंज जब-तब इराक, सीरिया, यमन यहां तक कि भारत में भी सुनाई दे जाती है। जानते हैं क्यों रह-रहकर शिया-सुन्नी के बीच भड़क उठती है हिंसा।

किसने इस खूनी संघर्ष को दिया अंजाम, गांव बने मलबे

पाकिस्तान में यह हिंसा शिया मिलिशिया समूहों की ओर से किए गए जवाबी हमले का परिणाम है। इससे पहले बृहस्पतिवार को पाराचिनार से जा रहे यात्री वैन के काफिले पर अज्ञात बंदूकधारियों ने हमला कर 47 शिया मुसलमानों को मार डाला था। जानकारी के अनुसार, बीते शनिवार सुबह कुर्रम जिले में ताजा सांप्रदायिक झड़पें शुरू हो गईं, जिसमें बड़ी संख्या में बंदूकधारियों ने भारी हथियारों के साथ आसपास के गांवों को निशाना बनाया। गांवों को मलबे में बदल दिया गया, घरों, बाजारों और सरकारी भवनों को आग लगा दी गई। कुर्रम जिले के एक अधिकारी ने बताया कि यह हमला शिया उग्रवादी समूह जैनाबियुन ने किया, जिसने शियाओं की हत्या का बदला लेने की ठानी थी।

शिया और सुन्नियों में आमतौर पर क्या अंतर है

दुनिया में मुस्लिम आमतौर पर दो समुदायों में बंटे हैं-शिया और सुन्नी। पैगंबर मोहम्मद के बाद ही इस बात पर विवाद पैदा हो गया कि मुसलमानों का नेतृत्व कौन करेगा। मुस्लिम करीब 190 करोड़ की आबादी में बहुसंख्यक सुन्नी हैं और अनुमानित आंकड़ों के अनुसार, इनकी संख्या 80 से 85 प्रतिशत के बीच है। दोनों समुदाय के लोग सदियों से एक साथ रहते आए हैं और उनके अधिकांश धार्मिक आस्थाएं और रीति रिवाज एक जैसे हैं।
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इबादी मुस्लिम कौन हैं, ये शिया-सुन्नी से अलग कैसे

इबादी आंदोलन या इबादिज्म इस्लाम की ही एक ब्रांच है, जिसके बारे में कई लोग मानते हैं कि ये खरिजाइट्स के वंशज हैं। इबादिज्म के अनुयायियों को इबादिस के रूप में जाना जाता है। वो खुद को सत्य और अखंडता के लोग कहते हैं। इबादी खुद को शिया और सुन्नी की तरह इस्लाम का सबसे पुराना और सबसे वास्तविक संप्रदाय मानते हैं। आज इनका सबसे बड़ा और सबसे समृद्ध समुदाय अरब के दक्षिण-पूर्वी प्रायद्वीप में ओमान में है। यह समुदाय अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, लीबिया और तंजानिया के कुछ इलाकों में भी रहता है।
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इंडोनेशिया में 99 फीसदी सुन्नी मुस्लिम आबादी

इंडानेशिया में दुनिया के सबसे ज्यादा मुसलमान हैं। वर्ल्ड पॉपुलेशन रीव्यू की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में मुस्लिम आबादी के मामले में इंडोनेशिया पहले नंबर पर है। यहां 24.2 करोड़ से ज्यादा मुसलमान रहे हैं, जो दुनिया की कुल मुस्लिम आबादी का 11.7 प्रतिशत है।। इनमें 99 फीसदी सुन्नी मुसलमान हैं, जबकि 1 फीसदी शिया हैं। मुस्लिमों की जनसंख्या के मामले में दूसरे नंबर पर पाकिस्तान है, जहां 24.07 करोड़ से ज्यादा मुसलमान हैं। इस सूची में तीसरा नंबर पर भारत का है। भारत में 20 करोड़ से ज्यादा मुसलमान रहते हैं। भारत में इस्लाम दूसरा सबसे बड़ा धर्म है।

शियाओं के मुकाबले सुन्नी परंपराओं को ज्यादा मानते हैं

सुन्नी मुसलमान खुद को इस्लाम की सबसे धर्मनिष्ठ और पारंपरिक शाखा से मानते हैं। सुन्नी शब्द 'अहल अल-सुन्ना' से बना है जिसका मतलब है परंपरा को मानने वाले लोग। इस मामले में परंपरा का मतलब ऐसे रिवाजों से है जो पैगंबर मोहम्मद और उनके करीबियों के जमाने से व्यवहार में चली आ रही हैं। सुन्नी उन सभी पैगंबरों को मानते हैं जिनका जिक्र क़ुरान में है। हालांकि, अंतिम पैगंबर मोहम्मद ही थे। वहीं, शुरुआती इस्लामी इतिहास में शिया एक राजनीतिक समूह के रूप में थे। 'शियत अली' यानी अली की पार्टी।
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शिया और सुन्नी के बीच लड़ाई की असल वजह क्या है

शियाओं का दावा है कि मुसलमानों का नेतृत्व करने का अधिकार अली और उनके वंशजों का ही है, क्यों अली पैग़ंबर मोहम्मद के दामाद थे। मुसलमानों का नेता या खलीफा कौन होगा, इसे लेकर हुए एक संघर्ष में अली मारे गए थे। उनके बेटे हुसैन और हसन ने भी खलीफा होने के लिए संघर्ष किया था। हुसैन की मौत युद्ध क्षेत्र में हुई, जबकि माना जाता है कि हसन को जहर दिया गया था। शिया इसीलिए शहादत और मातम मनाने का रिवाज है।

जब दोनों ही इस्लाम के अंग तो फिर इतना विवाद क्यों

ईरान, इराक़, बहरीन, अजरबैजान और यमन में शियाओं का बहुमत है। इसके अलावा, अफग़ानिस्तान, भारत, कुवैत, लेबनान, पाकिस्तान, कतर, सीरिया, तुर्की, सउदी अरब और यूनाइडेट अरब ऑफ अमीरात में भी इनकी अच्छी खासी आबादी है। मगर, उन देशों में जहां सुन्नियों की सरकारें है, वहां शिया गरीब आबादी में गिने जाते हैं। उनके साथ भेदभाव होता है और उन्हें दबाया जाता है। कुछ कट्टरपंथी सुन्नी सिद्धांतों ने शियाओं के खिलाफ नफरत को बढ़ावा दिया गया है।
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इस्लाम और घोड़ों का संबंध सदियों से रहा, शिया ज्यादा मानते

क्या आप जानते हैं कि इस्लाम और घोड़ों का संबंध इस्लाम की शुरुआत से ही रहा है? equestrianhijabisportswear.com के अनुसार, मुसलमानों की पवित्र पुस्तक कुरान में एक पूरा अध्याय 'सूरह अल-अदियात' घोड़ों को समर्पित है। इसके अलावा, हदीस नामक कई परंपराएं हैं जो अल्लाह की इन खूबसूरत रचनाओं की बात करती हैं। दरअसल, शिया लोग घोड़ों को पवित्र मानते हैं, उनके यहां घोड़ों का मांस खाना हराम है।

एक घोड़े ने कैसे कर्बला की लड़ाई में हुसैन के दिया बलिदान

माना जाता है कि ज़ुल्जनाह नाम का एक अरबी घोड़ा था, जो शियाओं के हुसैन इब्न अली का था। ज़ुल्जनाह बहुत वफादार माना जाता था और अपनी ताकत, सहनशक्ति और स्वामिभक्ति के लिए प्रसिद्ध था। ऐसा कहा जाता है कि उसने कर्बला की लड़ाई के दौरान हुसैन इब्न अली की रक्षा की थी। मगर, जब जंग में घायल हुसैन इब्न अली ने अपनी चोटों के कारण दम तोड़ दिया, तो ज़ुल्जनाह खून से लथपथ अपने परिवार के पास लौटा और उन्हें सचेत करने के बाद मर गया। यही वजह है कि मुहर्रम के जुलूस के दौरान उस ऐतिहासिक बलिदान का प्रतिनिधित्व करने वाले एक सुसज्जित सवार रहित घोड़े को सम्मानित किया जाता है।

घोड़ा बना शिया-सुन्नी के बीच नफरत की एक अहम वजह

वास्तव में घुड़सवारी एक खेल है। यह चूंकि इस्लामी लीडरों को बेहद पसंद हुआ करता था। शिया और सुन्नी में इसी को लेकर मतभेद है। पाकिस्तान-बांग्लादेश समेत जिस भी देश में शिया अल्पसंख्यक हैं, वहां उनके बच्चों से अक्सर ये सवाल मजहबी तौर पर पूछा जाता है कि क्या शिया लोग घोड़ों को पवित्र मानते हैं। यहां तक कि लद्दाख जैसे भारतीय इलाकों में आज भी हॉर्स ऑफ कर्बला मनाया जाता है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में इन घोड़ों को लेकर शियाओं पर तंज कसते हुए सवाल पूछा जाता है कि क्या तुम लोग घोड़ों को मानते हो?

ईरान में शियाओं के उभार से डरी अरब दुनिया

वर्ष 1979 की ईरानी क्रांति से उग्र शिया इस्लामी एजेंडे की शुरुआत हुई। इसे खासतौर पर खाड़ी के देशों की सुन्नी सरकारों के लिए बड़े खतरे के रूप में माना गया।
ईरान ने अपनी सीमाओं के बाहर शिया लड़ाकों और पार्टियों को समर्थन दिया जिसे खाड़ी के देशों ने चुनौती के रूप में लिया। लेबनान में गृहयुद्ध के दौरान शियाओं ने हिजबुल्ला की सैन्य कार्रवाईयों के कारण राजनीतिक रूप में मजबूती हासिल कर ली। पाकिस्तान और अफगानिस्तान में तालिबान जैसे कट्टरपंथी सुन्नी संगठन अक्सर शियाओं के धार्मिक स्थानों को निशाना बनाते रहे हैं।

इराक और सीरिया में भी शिया और सुन्नी के बीच दीवार

इराक और सीरिया में जारी वर्तमान संघर्ष ने भी दोनों समुदायों के बीच एक बड़ी दीवार खड़ा कर दी है। दोनों ही देशों में सुन्नी युवा विद्रोही गुटों में शामिल हो गए हैं। इनमें से ज्यादातर अल-कायदा की कट्टर विचारधारा को मानते हैं। शिया मुसलमानों की धार्मिक आस्था और इस्लामिक कानून सुन्नियों से काफी अलग हैं। वह पैगंबर मोहम्मद के बाद खलीफा नहीं, बल्कि इमाम नियुक्त किए जाने के समर्थक हैं।

उत्तराधिकार की लड़ाई के पीछे ये हैं बड़ी वजह

शियाओं का मानना है कि पैगंबर मोहम्मद की मौत के बाद उनके असल उत्तारधिकारी उनके दामाद हजरत अली ही थे। उनके अनुसार पैगंबर मोहम्मद भी अली को ही अपना वारिस घोषित कर चुके थे लेकिन धोखे से उनकी जगह हजरत अबू-बकर को नेता चुन लिया गया। शिया मुसलमान मोहम्मद के बाद बने पहले तीन खलीफा को अपना नेता नहीं मानते, बल्कि उन्हें गासिब यानी हड़पने वाला कहते हैं। उनका विश्वास है कि जिस तरह अल्लाह ने मोहम्मद साहब को अपना पैगंबर बनाकर भेजा था उसी तरह से उनके दामाद अली को भी अल्लाह ने ही इमाम या नबी नियुक्त किया था।

सुन्नियों के इतिहास की जड़ें देवबंद और बरेली तक

सुन्नी इस्लाम में इस्लामी कानून के चार प्रमुख स्कूल हैं। आठवीं और नवीं सदी में लगभग 150 साल के अंदर चार प्रमुख धार्मिक नेता हुए। उन्होंने इस्लामी कानून की व्याख्या की और फिर आगे चलकर उनके मानने वाले उस फिरके के अनुयायी बन गए। ये चार इमाम थे-इमाम अबू हनीफा (699-767 ईसवी), इमाम शाफई (767-820 ईसवी), इमाम हंबल (780-855 ईसवी) और इमाम मालिक (711-795 ईसवी)। इमाम अबू हनीफा के मानने वाले हनफी कहलाते हैं। इस फिकह या इस्लामी कानून के मानने वाले मुसलमान भी दो गुटों में बंटे हुए हैं। एक देवबंदी हैं तो दूसरे बरेलवी। दोनों ही नाम उत्तर प्रदेश के देवबंद और बरेली के नाम पर हैं।

पाकिस्तान में शिया आबादी 20 फीसदी, ईशनिंदा के आरोप

शिया मुसलमान पाकिस्तान की आबादी का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा हैं। इन्हें अक्सर सुन्नियों के हमलों और ईशनिंदा के आरोपों का सामना करना पड़ता है। 2021 और 2020 में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जहां प्रतिबंधित संगठनों से जुड़े लोगों ने शिया संप्रदाय के लोगों के ख़िलाफ खुलेआम प्रदर्शन किया है। इस तरह के ज्यादातर प्रदर्शन कराची, क्वेटा और पंजाब के कुछ हिस्सों में देखने को मिले। मानवाधिकार संगठनों के एक अनुमान के अनुसार, 2001 से अब तक पाकिस्तान में विभिन्न हमलों और टारगेट किलिंग में 2,600 शिया मारे गए हैं। मानवाधिकार संगठनों का यह भी कहना है कि हमलों का एक मुख्य कारण समाज के एक वर्ग में इस समुदाय के ख़िलाफ़ प्रचलित नफरती कंटेंट और रूढ़िवादिता है।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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